(A) चन्द बरदाई
(B) सांरगदेव
(C) नरपति नाल्ह
(D) हम्मीरदेव
Answer: C
बीसलदेव रासो के लेखक नरपति नाल्ह है। नरपति नाल्ह कवि विग्रहराज चतुर्थ (बीसलदेव चौहान) का समकालीन था।
विग्रहराज चतुर्थ ने ‘हरिकेलि’ नाटक की रचना की। विद्वानों का आश्रयदाता होने के कारण जयानक भट्ट ने विग्रहराज IV को ‘कवि बान्धव’ (कवि बंधु) की उपाधि प्रदान की।
बीसलदेव रासो ग्रंथ क्रिया एवं संज्ञा के रूप में अपभ्रंश पर आधारित है। इसकी भाषा में राजस्थानी एवं गजराती भाषाओं का सम्मिश्रण है। इसमें बीसलदेव के विवाह, उसकी उडीसा यात्रा तथा उसकी रानी के विरह का रोमांचक वर्णन है। यह एक नीतिकाव्य है।
NOTE: ‘बीसलदेव रासो’ में अजमेर के चौहान बीसलदेव तथा परमार राजा भोज (मालवा) की पुत्री राजमती की प्रेम कथा का वर्णन है।